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जिंदगी के रंग भी कितने निराले - जिंदगी पर कविता

आज में आपको यहाँ poem on life, life poem, zindgi kavita सुनाने जा रहा हु कुछ गलती हो तो छोटा भाई समझ कर माफ़ कर देना 
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जिंदगी के रंग भी कितने निराले है
हमने तो सिर्फ गम के पल ही सम्भाले है
यादो से भर कर दिन भी काले कर डाले है
दे रहे है सलाह मुझे वो कौनसे मेरे घरवाले है
सरकार को बुरा कहु या कही कमी मुझमे है
बेरोजगारी भी मारे जैसे जहर मुझमे है
सरकारी नौकरी के फॉर्म भी भर डाले है
लाखों ख़्वाई के कत्ले मैंने कर डाले है
करी पढ़ाई तो ना ज्ञान लिया
नम्बर ना आये तो क्या नाम किया
पेपर को पास किया तो पढ़ने में नाम किया
वरना तो पढ़ाई को बदनाम किया
अब में खुद क्या बखान करू 
लगे पोस्टर कोचिंग के उन पर ध्यान करू
विद्या को पैसो के नाम करू
घर को करने शघर्ष आखरी सलाम करु
करने को कुछ तो करना पड़ता है
ऐसे काम नही चलता पेट तो भरना पड़ता है
करने को खेती में भी करलू 
पर बिन पानी फसलो को जलना पड़ता है
फिर मुझे खुद खुशी करने चलना पड़ता है
आसान नही राह कोई हर राह पर जलना पड़ता है
सफलता की तो कोई सीमा नही
बस पैसो के पीछे मजदूर को धूप में सड़ना पड़ता है
पैसे वाले क्या ला पाते है वो सन्तोष
जो गरीब को करना पड़ता है

आपसे निवेदन है 

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